सज्जनता जीवन को शीतलता प्रदान करने वाली समीर है। सज्जनता के अभाव में जीवन उस जलते अंगारे के सामान है जो स्वयं तो जलता ही है मगर अपने संपर्क में आने वाले को भी जलाता है।
सज्जनता ही जीवन का आभूषण और श्रृंगार है। सोने की लंका में रहने वाला रत्न जडित सिंहासन पर आरुढ़, नानालंकारों को धारण करने वाले रावण का जीवन भी शोभाहीन है। और पर्वत पर पत्थर के ऊपर व पेड़ की डालों पर बैठे सुग्रीव, हनुमान जी सहित आदि वानरों व अँधेरी गुफा में वास करने वाले जामवंत का जीवन शोभायुक्त है।
जीवन की शोभा अलंकारों में नहीं अपितु आपके उच्च विचारों से है। सज्जनता रुपी आभूषण को धारण करो ताकि स्वर्ण आभूषणों के अभाव में भी आपका सौन्दर्य बना रहे।
जय श्री कृष्णा
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