जैसे हजारो गायों में भी बछड़ा अपनी माता को पहचानकर उसी के पास जाता है, उसी प्रकार व्यक्ति जो भी कर्म करता है, वह कर्म भी उसके पीछे-पीछे चलता है अर्थात् व्यक्ति को अपने कर्मो का फल अवश्य ही भोगना पड़ता हैं। कहा भी गया है- कर्मो की गति न्यारी ।
अत: मनुष्य को हमेंशा बुरे कर्मो से बचना चाहिए, क्योंकि बुरे कर्मो का फल बुरा ही होता है, चाहे वह फल मनुष्य को बीमारी के रूप में मिले, चाहे वह फल मनुष्य को दुर्धटना के रूप में मिले, चाहे वह फल मनुष्य को हानि तथा असफलता के रूप में मिले या चाहे वह फल मनुष्य को अन्य किसी पीड़ा के रूप में मिले, लेकिन बुरे कर्मो का फल मनुष्य को भुगतना ही पड़ता है।
मनुष्य धन-दौलत के लोभ-लालच में बुरे कर्म करते समय अन्तिम एवं परम सत्य को भूल जाता है कि जिस धन-दौलत के लिए वह बुरे कर्म कर रहा है उस धन-दौलत में से एक रूपया भी, अन्त समय में उसके साथ जाने वाला नहीं है। उसके साथ केवल उसके बुरे कर्म हीं जायेंगे ओर धन-दौलत यहीं पड़ीे रह जायेंगी।यहां तक कि उसके बन्धु बान्धव पहने आभुषणों के साथ उसके पहने कपड़े तक भी उतार देंगे कुछ भी साथ नहीं जाने देंगे। इस अन्तिम एवं परम सत्य को जानकर मनुष्य को, अपनी आत्मा के कल्याण के लिए एवं मनुष्य जन्म को सार्थक बनाने के लिए, अधिक से अधिक शुभ एवं अच्छे कर्म करने चाहिए।
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