सोमवार, 7 नवंबर 2016

ऐ परिंदे!!

ऐ परिंदे!!
यूँ ज़मीं पर बैठकर क्यों
आसमान देखता है..
पंखों को खोल, क्योंकि,
ज़माना सिर्फ़ उड़ान देखता है !!

लहरों की तो फ़ितरत ही है
शोर मचाने की..
लेकिन मंज़िल उसी की होती है, जो नज़रों से तूफ़ान देखता है !!

 

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