सोमवार, 17 अक्टूबर 2016

सुख सम्पत अर औदसा

1. सुख सम्पत अर औदसा , सब काहू के होय।
    ज्ञानी कटे ज्ञान सूं , मूरख काटे रोय।।
अर्थ - सुख - सम्पति और बुरे दिन तो समयानुसार  सभी के सामने आते रहते हैं, परन्तु ज्ञानी व्यक्ति बुरे दिनों को ज्ञान से काटता है और मूर्ख व्यक्ति उन्हें रोकर  कर काटता है।

2. राम कहे सुग्रीव नैं , लंका केती दूर।
  आलसियाँ अलधी घणी , उद्यम हाथ हजूर।।
अर्थ - राम चंद्र जी ने सुग्रीव  से पूछा , " लंका कितनी दूर है ? " सुग्रीव ने तत्काल उत्तर दिया , " आलसी के लिए तो वह बहुत दूर है , परन्तु उद्यमी के लिए मात्र एक हाथ की  दूरी पर ही है।  अर्थात कर्म वीर के लिए जीवन में उद्यम का ऊँचा स्थान है। बिना उद्यम किसी को भी अपने जीवन में  नहीं मिलती है।

3. कहा लंकपत ले गयो , कहा करण गयो  खोय।
   जस जीवन , अपजस मरण , कर देखो सब कोय।।
अर्थ - लंकापति रावण अपने साथ क्या ले गया और महारथी कर्ण ने संसार में क्या खोया ? सोने की लंका का स्वामी होते हुए भी रावण ने अपयश प्राप्त किया और महारथी कर्ण ने सोने का दान देकर यश प्राप्त किया ..... ....

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