बुधवार, 12 अक्टूबर 2016

बांटिये

हो सके तो मुस्कुराहट बांटिये,
रिश्तों में कुछ सरसराहट बांटिये !
नीरस़ सी हो चली है ज़िन्दगी बहुत,
थोड़ी सी इसमें श़रारत बांटिये !

जहाँ भी देखो ग़म पसरा है,आँसू हैं,
थोड़ी सी रिश्तों में हरारत बांटिये !
नहीं पूछता कोई भी ग़म एक-दूजे का लोगों में थोड़ी सी ज़ियारत बांटिये !

सब भाग रहे हैं यूँ ही एक-दूजे के पीछे,
अब सुकून की कोई इब़ादत बांटिये ! जीने का अंदाज़ न जाने कहाँ खो गया,
नफ़रत छोड़ प्यार प्रेम बांटिये !

ज़िन्दगी न बीत जाये यूँ ही दुख-दर्द में,
बेचैनियों को कुछ तो राह़त बांटिये...

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